दक्षिण भारत के केरला के पत्तनंतिट्टा जिला के आरन्मुला में 12 कवि का आलवार से निर्मित "दिव्य देशम ' कहनेवाला मंदिर है पार्थसारथी मंदिर । इसका मूर्तिकला केरल शैली में है । ईस्वीं छठी से लेकर नवीं दशक के तमिल आलवार संतों द्वारा मंदिर का वर्णन हुआ है । यह 108 दिव्यदेशंस में एक है जो कृष्णभगवान को समर्पिति है । विष्णु के इस अवतार रूप को पार्थसारथी कहते हैं ।
पार्थसारथी कृष्ण का दूसरा नाम है जो अर्जुन के सारथी बनने से प्राप्त हुआ था । यह कृष्ण भगवान का प्रमुख मंदिर है । यह गुरुवायूर त्रिच्चंबरम, तिरुवारपु तथा अंबलपुष़ा श्रीकृष्ण मंदिर की श्रेणी में आता है । केरल के चेंगन्नूर इलाके के पाँच प्राचीन मंदिरों में एक है यह । माना जाता है कि पाँचों मंदिरों का निर्माण पंचपांडवों ने किया था । युधिष्ठिर द्वारा त्रिचिट्टाट्टु महाविष्णु मंदिर, भीम द्वारा पुलियूर महाविष्णु मंदिर, अर्जुन द्वारा आरन्मुला पार्थसारथी मंदिर, नकुल द्वारा तिरुवनवंडूर महाविष्णु मंदिर और सहदेव द्वारा तृक्कोडित्तानम महाविष्णु मंदिर का निर्माण हुआ था । हर साल पंतलम से तिरुगहना ले जाते समय आरन्मुला मंदिर में उतार दिया जाता है । "तंकगहना' तिरुवितांकूर राजा द्वारा भेंट किया गया था जो आरन्मुला मंदिर में सुरक्षित है । मंडल उत्सव के लिए यहाँ "तंक गहना' शबरीमला ले जाते हैं । मंदिर के प्रवेश द्वारा पद चार मीनारें है । पूर्व मीनार में चढने के लिए अठारह सीढियाँ हैं, उत्तर मीनार मं चढ़ने के लिए 57 सीढ़ियाँ है जो पंपा नदी की ओर जाती हैं । मंदिर के दीवारों पर 18 वीं सदी के चित्र अंकित हैं ।
मंदिर सुबह 4 बजे से 11 बजे तक तथा शाम 5 बजे से 8 बजे तक खुले रहते हैं। इसका भी शासन तिरुवितांकूर देवस्वम बोर्ड द्वारा किया जाता है ।